तब ये प्रश्न उठना जायज है...मरा कौन है?

जब एक सांस सुकून की लेने के लिये

तड़पते, अस्पतालों और सड़क पर दम तोड़ते लोग

न झिंझोड़ पाएँ मस्तिष्क को,

जब चिताओं से उठती लपटें

जिनमें अपनों ने खुद लिटाया है अपनों को

न झिंझोड़ पाएँ मस्तिष्क को

जब गंगा तट पर लगे न जाने कहाँ से बहकर आए शवों को

कोओं, गिद्धों और कुत्तों का भोजन बनते देखना भी

न झिंझोड़ पाये मस्तिष्क को

जब गंगा तट पर रेट में दबे शव

उठकर खड़े हो जाएँ और मांगने लगें अपना अधिकार

और यह दृश्य भी

न झिंझोड़ पाये मस्तिष्क को

तब ये प्रश्न उठना जायज है

मरा कौन है?

अरुण कान्त

17/05/2021

   

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