एक कवि के नाम पाती....

कल तक बजा रहा था जो मंजीरा

 एक कवि को एक बार फिर लाचारी, बेचारगी

सरे बाजार बेचते देखा

कल तक बजा रहा था जो मंजीरा,

उसे करते आज भूख का व्यापार देखा।

शापग्रस्त हैं जीवन कहाँ किसी के

बस कुछ को हैं वरदान मिले

कवि, जिस राजनीति के तुम पक्षधर

उसी से सबको श्राप, कुछ को अभयदान मिले।

लिख रहे थे अपने खून से जब दास्तां

दाभोलकर, पानसरे, कलबुर्गी और गौरी लंकेश

कवि तुम न कभी हैरान दिखे

चलो काम आई उनकी शहादत

तुम्हारी लेखनी को कुछ तो जलपान मिले।

अरुण कान्त, 30 मई, 2021  

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